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________________ - ७८ • जैनपदसागरं प्रथमभाग ७२ । राग ख्याल। : . मैं नेमिजीका बंदा मैं साहिबजीका वंदा॥ में नेमिजी० ॥ टेक । नैनचकोर दरसको तरसै; खामी पूनमचंदा ॥ मैं नेमिजीका० ॥ १॥ छहों दरबमें सार बतायो, आतम आनंदकंदा। ताको अनुभव नितप्रति करते, नासै सब दुख दंदा॥ ॥ मैंनेमिजीका० ॥२॥ देत धरम उपदेश भविक 'प्रति, इच्छा नाहिं करंदा । रागरोष मद मोह नहीं नहिं, क्रोध लोभ छलछंदा॥में नेमिजीका? ॥३॥जाकोजस कहि सकैन क्योंही, इंदफनिंद . नरिंदा । सुमरन भजन सार है द्यानतं, अवर बात सब फंदा ।। मैं नेमिजीका०॥४॥ (७३) बंदों नेमि उदासी, मद मारवेको।बंदोंगाटेका रजमतिसी तिन नारी छारी, जाय भए बनवासी ॥ बंदों०॥१॥ हयगय रथ पायके सब छांडे, तोरी ममता फांसी । पंच महाव्रत दुर्द्धर पारे १'धंदा' ऐसा भी पाठ है।
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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