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________________ हजूरी पद-संग्रह। पायो । रुल्यो० ॥ ४॥ सिद्ध हों, शुद्ध हो बुद्ध अविरुद्ध हों, ईश जगदीश बहु गुणनि गायो॥ रुल्यो०॥५॥ सर्व चिंता गई, बुद्धि निर्मल भई, जबहि चित जुगल चरनन लगायो॥ रुल्यो० ॥६॥ भयो निहर्चित धानत चरन-शनगहि, तार अब नाथ ! तेरो कहायो॥ रुल्यो० ॥७॥ ___७१ । राग रामकली। : प्रभु तुम कहियत दीनदयाल ॥ प्रभुतुम० ॥ टेक ।। आपन जाय मुकतिमें बैठे,हम जुरुलत जगजाल ॥ प्रभुतुम०॥१॥ तुमरो नाम जपैं हम नीके, मनवच तीनों काल । तुम तो हमको कछू देत नहि, हमरो कोन हवाल ॥ प्रभुतुम०॥२॥ बुरे भले हम भगत तिहारे,जानत हो हम चाल। अवर कछु नहिं यह चाहत है, रागरोपको टाल :॥ प्रभुतुम० ॥३॥ हमसों चूक परी सोवकसो, तुम तो कृपाविशाल । धानत एकवार प्रभु . जगतै, हमको लेहु निकाल ॥ प्रभुतुम० ॥४॥ १। माफ करो।
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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