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________________ ६७ हजूरीपद - संग्रह. IT ॥ २ ॥ तुमरे चरनकमल बुध ध्यावत, नावत · हैं पुन निज माथजी | कीजिए || ३ || भागचंद मैं दास तिहारो, ठाडो जोडूं जुगल हाथजी ॥ कीजिए ॥ ४ ॥ (५५) सोई है सांचा महादेव हमारा, जाके नाहीं रागरोष-मद-मोहादिक विस्तारा ॥ सोई है || टेक ॥ जाके अंग न भस्म लिप्त है, नहिं रुंडन - .कृतहारा । भूषण व्याल न भालं चंद्र नहिं, शीशजटा नहिं धारा || सोई है ० ॥ १ ॥ जाके गीत न नृत्य न मृत्यु न, बैल तणो न सवारा । नहि कोपीन न काम कामिनी, नहि धन धान्य पसारा ॥ सोई है ० ॥ २ ॥ सो तो प्रगट समस्त वस्तुको, देखन जाननहारा । भागचंद ताही को व्यावत, पूजत वारंवारा ॥ सोई है० ॥ ३ ॥ / . (५६ ) स्वामी रूप अनूप विशाल, मन मेरे बसत । स्वामी ॥ टेक ॥ हरिगन चमरवृंद ढोरत तह,
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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