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________________ RA • हजरी पद-संग्रह... . निकली । वस्तु तत्त्वप्रकाशिनी जिम, भानु किरनावली । इष्टजिन० ॥२॥जास-पद-अरविंदकी, मकरंद अति निरमली। ताहि प्रान करें नमित हरि,मुकुटद्धतिमनि,अली ॥ इष्टजिनः॥३॥ जाहि जजत विराग उपजत, मोहनिद्रा टली। ज्ञानलोचनत प्रगट लखि, घरत शिक्वटगली ॥ इष्टजिनः॥४॥जासु गुन नहिं पार पावत, बुद्धिरिद्धिबली । भागचंद सु अल्पमति जन, की तहां क्या चली । इष्टजिन०॥५॥ • ४६ : राग सोरठ । खामी मोहि अपनो जान तारो, या विनती अब चित धारो।। टेक ।। जगत उजागर करुनासागर, नागर नाम तिहारो ॥ स्वामी० ॥१॥ भव अटवीमें भटकत भटकत, अब मैं अति ही हारचो।। स्वामी० ॥२॥ भागचन्द स्वच्छंद ज्ञानमय, सुख अनंत विस्तारो॥स्वामी० ॥३॥ १ चरण कमलकी । २ सुगंधित रज । ३ उसको सूंघते हैं नमित हुये इंद्रोंके मुकुटाके मणि रूपी भवरे । ४ बुद्धिरिद्धिके धारक ।
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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