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________________ - "४८ बैनपदसागर प्रथमभागचितलायो आज मैंगाटेक ॥ अशुभ गये शुभ प्रगट भएं हैं, सहज कल्पतरु छायो ।आज०॥ .॥१॥ ज्ञान शक्ति तप ऐसी जाकी, चेतन-पद दरसायो । आज मैं०॥२॥ अष्ट कमरिघु जोधा जीते, शिवअंकूर जमायो॥ आज॥३॥ (३०) नैमिप्रभूकी श्यामवरन छवि, नैनन छाय रही ।। नेमि०॥टेक ॥ मणिमय तीन पीठपर अंबुज, तापर अधर ठही । नेमि०॥१॥ मार मार तप धार जार विधि, केवलरिद्धि लही। चार तीस अतिशय दुति-मंडित, नवदुर्गदोप नहीं ॥ नेमि ० ॥ ३॥. जाहि सुरासुर नमत सततै, मस्तकतें परस मही। सुरगुरुवर-अंबुजा प्रफुलावन, अदभुतभान-सही । नेमि० ॥४॥ धर अनुराग विलोकत:जाको, दुरित नसें सब ही। दौलत महिमा अतुल जासकी, कापै जात कही। नेमि०॥४॥ -- - .. १ कामदेवको मारकर। २ नवदुगुण-अष्टादश दोष नीरतर । ४ पृथिवी । ५ अपूर्व सूर्य ।
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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