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________________ हजूरी प्रभातीपद-संग्रह २५ : निवसे वसुम धरा। दौलत जे याको जस गावै,ते : हूँ अज अमरा ॥ भज०॥४॥ __ (यह पद प्रभातीमें भी चलता है) चंद्रानन जिन चंद्रनाथके, चरन चतुर चितः ध्यावतु है। कर्मचक्र चकचूर चिदातम, चिनमूरतपद पावतु है । चंद्रा० ॥ टेक ॥ हाहा हूहू नारद तुंवर, जासु अमल जस गावतु हैं । पद्मा शची शिवा श्यामादिक, करघर वीन वजावतु है। चंद्रानन० ॥१॥विन इच्छा उपदेशमाहि. हित, अहित जगत-दरसावतु है । जा-पद-तट सुरनरमुनि-घट-चिर, विकट विमोह नशावतु है ॥ चंद्रानन० ॥२ ॥ जाकी चंद्रवरन तनः दुतिसों कोटिक सूरै छिपावतु हैं। आतमज्योतउद्योत मांहि सव,ज्ञेय अनंत दिपावतु है। चंद्रा: नन०॥३॥ नित्य उदय अकलंक अछीनसु मु. १ हाहा इहू नारद और तुंवर ये चार जातिके गन्धर्व देव हैं। २ सूरज । ३ पदार्थ । .
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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