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________________ इजूरी प्रभाती पद-संग्रह पदवी छोरिक विरागता धरी । तासों जिनराज भये, दृष्टि या परी ॥ पूजन ॥२॥ आन. भावजन्म जन्म, कीन बहु बरी । यात गति चार बीच विपति अति भरी ॥ पूजत०॥३॥ बुधजनं जिन सरन गह्यो, मिटगई मरी। आपमाहिं आप लख्यो,शुद्धि आपरी०॥४॥ (२) . हजूरी पद संग्रह प्रथमभाग। १ | कविवर बनारसीदास कृत । १ राग काफी। । चिंतामन स्वामी सांचा साहिब मेरा,शोक हरें तिहुलोकको उठि लीजतु नाम सवेरा,चिंतामन०॥ टेक ॥ १ ॥ सूर समान उदोत है, जग तेज प्रताप घनेरा । देवत मूरत भावसों, मिट जातं मिथ्यात अंधेरा, चिंतामनः ॥२॥ दीनदयाल निवारिये, दुख संकट जोनि वसेरा । मोहि अभयपद. दीजिये. फिर होय नहीं भवफेरा, चिंतामन० ॥३॥बिंब विराजत आगरै; थिर
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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