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________________ जैन पदसागर.प्रथमभाग परमातम, ज्ञानमयी हमको दरसाये। ऐसे ही हममें हम जानें, बुधजन गुन मुख जात न गायें ।। मुनिजन ॥३॥: . (२७) राग-अलहिया। चंदजिनेश्वर नाम हमारा, महासेनं सुत जगत पियारा ।। चंद०॥टेक ।। सुरपति नरपति फनिपति सेवत, मानि महा उत्तम उपगारा । मुनिजन ध्यान धरत उरमाही, चिदानंद पदवीका धारा॥ चंदजिनेश्वर० ॥१॥ चरन सरन बुधजन जे आये, तिनपाया अपना पद सारा ॥ मंगलकारी भवदुख हारी, स्वामी अद्भुत उपमावारा॥ चंदजिनेश्वर० ॥२ . (२८) .. राग-भैरों पूजत जिनराज आज आपदा हरी । दरस्यो तत्त्वार्थ मोहि धन्य या घरी ॥ पूजत०॥टेक॥ छलंबलं मद को मेरी उच्चता करी । अबलोंया जानत सो वात निरवरी०॥ पूजनः॥१॥राज़
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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