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________________ हजूरी प्रभाती पद-संग्रह अप्लमतिको कहबो जिम, शिशुकगिरिंद-धका वन है। पद्मासन० ॥४॥ . (९) श्रीजिनवर दरश आज, करत सौख्य पाया अष्टपातहार्यसहित, पाय शांति काया। श्रीजिन०. ॥ टेक ॥ वृक्ष है अशोक जहाँ, भ्रमरगान गाया। सुंदर मंदारपहुप-वृष्टि होत आया । श्री जिन० ॥१॥ ज्ञानामृत भरी बानि, खिरै भ्रम नशाया। विमल चमर ढोरत हरि, हृदय भक्ति लाया। श्रीजिन० ॥२॥ सिंहासन प्रभाचक्र बालजग सुहाया ॥ देवदुंदुभीविशाल, जहां सुर बजाया। श्रीजिन ॥ ३॥ मुक्ताफल माल सहित, छत्र तीन छाया। भागचंद अदभुतं छबि कही नहीं जाया॥ श्रीजिन० ॥ ४॥ (१०) प्रभुतुम मूरत हगंसों निरखेहरखै मोरो जीयरा प्रभुतुम० ॥ टेक ॥ बुझत कषायानलं पुनि उपजे. १ बालकद्वारा पर्वतको ढकेलना।
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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