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________________ १२३ ... हजूरी: पद -संग्रह ।... है । उसी रेस्तै चलें सायर, तुमारे बीच बसता है ॥ तिहारी ॥ ३ ॥ विमुख तुमसों भए जितनें, तिते दोजकमें घसता है । मुरीद तेरा सदा बुध जन, आपने हाल मुसता है ॥ तिहारी० ॥ ४ ॥ १५१ । राग- अडाणो । ' तुम चरननकी शरन आय सुख पायो ॥ तुम० ॥ टेक ॥ अवलों चिरभव बनमें डोल्यो, जन्म जन्म दुख पायो ॥ तुम० ॥ १॥ ऐसो सुख सुर प्रतिके नाहीं, सो मुख जात न गायो । अब सब संपति मो उर आई, आज परमपद लायो || तुम० ॥ मनवचतनतैं, दृढकरि राखों, कबहुं न न्या विसिरायो । बारंबार बीन वै बुधजन, कीजे मनको भायो ॥ तुम० ॥ ३ ॥ ( १५२) आनँद भयो निरखत मुखः जिनचंद | आनँद ॥ टेक ॥ सब आताप गयो ततखिन ही, उपज्यो हर अमंद ॥ १॥ भूलथकी रागादिक कीने, तब १ नरकमें । २ दास वा । शिष्यं । । 1 ·
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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