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________________ . . हजूरी पद-संग्रह। ११७ मोकों, कहूं क्या खवर सब तोकों । सहज मह बात अति वांकी, अंधमको आपकी झांकी ।। ऋपभ० ॥५॥ कहूं क्या तुम सिफत सांई धनत नहिं इंद्रसों गाई । तिरे भविजीव भवसर ते,तुमारा नांव उर धरतें ॥ ऋषभ० ॥ मेरा मतलब अवर नाही, मेरा तो भाव मुझमाहीं। वाहिपर दीजिये थिरता, अरज बुधजन यही करता ऋषभ० ॥६॥ . " . १४३ रेखता। " चंदजिन विलोकवेत फदं गलि गया, धंदसब जगतके विफल, आज लखि लिया । चंद०॥टेक॥ शुद्धचिदानंद खंध, पुद्गलके माहि; पहिचान्या हममें हम, संशय भ्रम नाहि ॥ चंद० ॥शीसोनईस सो नदास, सोनहीं हैं रंक। ऊंच नीच गोत नाहि, नित्य ही निशंक चंद॥२॥ गंध वर्न फरस खाद, बीसगुन नहीं। एक आतमा अखंड, ज्ञान है सही ॥ चंद॥४॥ परकों जानि ठानि परकी, वानि पर भया।. परकी. साथ
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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