SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हजूरी पद-संग्रह। १०९ मोकोंगा टेका। अनादिकालको दुखी रहत हों, टेरतहूं जमतें डरिकै ॥ मोकों ॥१॥ भ्रमत. फिरत चारों गति भीतर, भवमाही मरि मरि करिके । इवत अगम अथाह जलंधिम, राखो हाथ पकर करिकै ॥ मोकों॥२॥ मोह भरम विपरीत वसत उर, आप नजानों निजकरिकै। तुम सवज्ञायक मोहि उबारो, बुधजनको अपनो करिकै ॥ मोको० ॥३॥ १२९ । राग सारंग। हम शरन गयो जिनचरनको ॥ हम०॥ टेक ॥अव अवरनकी मान न मेरे, डरहू रह्यो नहिं मरनको ।। हम०॥२॥ भरमविनाशन तत्वप्रकाशन, भवदधि-तारनतरनको । सुरपति नरपति ध्यान घरत वर, करि निश्चय दुखहरनको ॥ हमगाशा याप्रसाद ज्ञायक निजमान्यो, जान्यो तन जड परनको । निश्चय सिधसो पै कषायतें, पात्र भयो दुख भरनको ।। हम० ॥३॥ प्रभुविन अवर नहीं याजगमैं, मेरे हितके करनको । बुध
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy