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________________ हजूरी प्रद-संग्रह (१०३.) : 1 - "जिन साहिब मेरे हो, निवाहिये दासको । जिन० ॥ टेक ॥ मोहमहातम घोर भरयो है, कीजिये ज्ञानप्रकाशको ॥ जिनः ॥ १ ॥ लोभ्र रोगके वैद प्रभुजी, औषध द्यो गर्दनासको ॥ जिन० ॥ २ ॥ द्यानत क्रोधकी आग बुझावो, चरस छिमाजलरासको ॥ जिन० ॥ ३ ॥ ( १०४ ) : सांचे चंद्रप्रभू सुखदाय ॥ सांचे० ॥ टेक ॥ भूमि सेत अम्रत वरपाकरि, चंद नामतें शोभा पाय ॥ सांचेः ॥ १ ॥ नरवरदाई कौन बडाई, पशुगन तुरत किये सुरराय ॥ सांचे ॥२॥ द्यानत चंद असंखनिके प्रभु, सारेथ नाम जप मनलाय ॥ सांचे० ॥ ३ ॥ " (१०) काम सरे सब मेरे, देखे पारसस्वाम ॥ काम? ॥ टेक ॥ सप्तफना अहि सीस-विराजै, सात """"" - 3. १ रोग । २ यथा नाम तथा गुणा । ५ A
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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