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________________ ( ७२ ) हमारे खूनकी तेजी बहुत शीतल हो गई है। यहां तक कि हम अपने आप तकको भूल गये है और धीरे धीरे नीचेकी ओर चले जा रहे हैं । अज्ञानकी असीम राज्यसत्ताने हमें परक्श और अपना गुलाम बना लिया है । इस हालतसे हमारा उद्धार होनेके लिए अब नवीन शक्तिके अवतारकी जररूत है। क्योंकि जिन पुरानी शक्तियों के ऊपर हमें भरोसा था-अपने उद्धारका पूर्ण विश्वास था-उनमें कुछ तो कछुवेकी तरह मन्द मन्द चलने में ही अपना भला समझती है और कुछ ऐसी है जिनमें स्वार्थियों, मायावियों, समाजके शत्रुओंकी ही अधिक भरती होगई है। इससे अब उनपर विश्वास रखना-उनसे भलाईकी आशा करना-निष्फल जान पड़ता है । यद्यपि ऐसी महाशक्तिके उद्भव होनेमें अभी बहुत कुछ विलम्ब है, परन्तु फिर भी यह लिखते वडी खुशी होती है कि बहुतसे विद्वान् और समाजकी निष्काम सेवा करनेवालोंकी एक मण्डली सगटित होगई है । उसका नाम दिगम्बरजैनमहामण्डल है। इसका उद्देश्य देश विदेशमें जैनधर्मका प्रचार करना है। इसके द्वारा एक साप्ताहिक पत्रका भी जन्म होना निश्चित हो चुका है । पत्रका नाम जनभानु होगा । इसका पालन-सम्पादन-हमारी जातिके अपूर्व विद्वद्रत्न स्या० वा० न्यायवाचस्पति १० गोपालदासजीके द्वारा होगा। परमात्मासे इस मण्डलके कर्मवार होनेकी प्रार्थना करते है। इस नवीन शक्तिके द्वारा बहुत कुछ समाजसुधारकी आशा की जाती है। ६-आत्मपतन । मनुष्य चाहे मूर्ख हो अथवा पढ़ा लिखा, वह स्वार्थसे अपनेको कहा तक गिरा सकता है, कहां तक लोगोंकी दृष्टिमें घृणास्पद वना परमात्मासे इस बारा बहुत कुछ समपतन । वह स्वार्थसे बना नकीन शाम इस मण्डलके वाचस्पति ५० गोपालदाहमारी जातिके अपूर्व
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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