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________________ ( ७१ ) हुए बिना नहीं रहता । जैनसमाज अभी अज्ञानके गड्ढे में बहुत गिरा हुआ है। उससे ऊद्धार करनेमें बडी कठिनाइया सहनी होंगीं । रूढ़ि के गुलामोंके विरुद्ध आन्दोलन करना पडेगा । उनकी गालिया सुननी पडेंगीं । तिरस्कार सहना होगा । तब कहीं आप अपना अभिष्ट लाभ कर सकेंगे। यदि आपमें यह शक्ति है, और सच्चे हृदयसे आप समाजका उद्धार करना चाहते है तो इस भीरुताको जलाजलि दे डालिए । मानापमानको पास तक फटकने न ढीजिए । हम विश्वासके साथ कहते है कि आप उस हालत में बहुत कुछ समाजका हित कर सकेंगे । और यदि इतनी सहनशीलता - 1 अकायरता - नहीं है तो घरमें बैठ जाइये । कायरोंसे दूसरोंका हित नहीं हो सकता । देशका तथा जातिका कल्याण उसी महात्माके द्वारा होगा जो अपने जीवनकी कुछ परवा न कर लोकहितमें लगेगा । भारतवर्षका इतिहास ऐसे वीरोंसे भरा हुआ पडा है । हमें भी उन्हीं महात्माओंसे आत्मसमर्पण करना सीखना चाहिए । ५ - नवीन शक्तिका अवतार । यह ब'त स्वाभाविक है कि उन्नति संसार में जत्र पुरानी शक्तियां ढीली हो जाती है और उनमें काम करनेकी हिम्मत नहीं रहती । अथवा वे कायरतासे अपनेको कार्यक्षेत्रमें आगे नहीं बढा सकती तत्र नियमसे नवीन शक्तिका प्रादुर्भाव होता है । जैन समाज के प्रधान नेता भगवान् समन्तभद्र और अकलक आदि निष्काम योगियोंका ऐसे ही समयमें अवतार हुआ था । उस समय उनके द्वारा जैसी जैनधर्मकी प्रगति हुई थी वह किसीपर अविदित नहीं है । ठीक वही समय आज हमारे लिए फिर आ उपस्थित हुआ है। 1
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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