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________________ इससे बालकपनमें ही मन अत्यन्त संकुचित भयवान और निरुद्यमी हो जाता है। फिर मनोवृत्तियों में स्फूर्ति और विकाश नहीं हो सकता। अन्धकार युक्त स्थानमें जानेसे अथवा किसी भयानक शब्दके सुननसे फिर उनका हृदय कम्पित होने लगता है। विचार करनेसे स्पष्ट जान सकोगे कि ऐसी ऐसी दुष्प्रथा ही हमारे देशकी सन्तानके निर्बल होनेकी प्रधान कारण हैं। रोते हुए बालकको सहसा ऐसा डर दिखानेसे उसे उसवक्त जैसा कष्ट-दुःख-होता है यह बतलाना बहुत कठिन है। यद्यपि उस समय वालक डरसे रोना अवश्य बंद कर देता है पर । उसके वेगको सहसा रोकनेमें उसे असमर्थ होजानेसे फिर उसका हृदय फटने लगता है। वह उस समय आंखे मीचकर अथवा माताके आंचलसे अपना मुँह छिपाकर उसी मूर्ख माता गोदमें छिपनेकी चेष्टा करता है। इस तरहके भयसे ही अधिकांश वालकोंको अच्छी नींद नहीं आती और फिर इसीसे वे उस कची नीदमें स्वप्न देखकर रो उठते हैं। (६) बालकको शान्त करनेके लिए बहुतसी उनकी माताएं उन्हें झूठा विश्वास करा देती हैं । चुप रह ! तुझे मिठाई दूंगी, खिलोना दूंगी, आकाशसे चांद लादूगी । इस तरहकी अनेक सच्ची झूठी बातोंसे उसे वे शान्त करनेकी चेष्टा करती है । माता झूठ नहीं बोलती है, उसमें बहुत शक्ति है, वह इच्छा करते ही चन्द्र, सूर्य, आकाश, पाताल आदि सभी कुछ ला सकती है। पहले पहल वालकके सरल हृदयमें इस ताहका विश्वास दृढ़ हो जाता है। बाद दो चार दिनतक इसी तरह उसे धोखा देनेसे वह फिर माताके कहनेपर विश्वास नहीं करता है। स्वयं भी झूट बोलने, दूसरोंको ठगने और
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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