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________________ (५५) उत्तम शिक्षाका स्थान है। पाठशालाकी वुरी शिक्षाप्रणाली और कठोर शासन प्रणाली लिखने पटनेमें वालकांको इतना उदासीन बना देती है कि फिर जीवनपर्यन्त वह भाव हृदयमें खूब ठस जाता है और उससे वे लिखने पहनेका सुख अनुभव करनेमें असमर्थ हो जाते हैं। विशेप करके माता शिक्षाप्रद छोटी छोटी कथाओंके द्वारा यदि वालकको शिक्षा दिया करे तो वे इतनी हृदयग्राही और कार्यकारी होती है कि हनारों बार पढानेसे भी उतने फलके लामकी सभावना नहीं होती। (१) एकसे अधिक सन्तान हो तो भी माताको उन सबपर समान प्रेम और उनके सुधारके लिए समान प्रयत्न करना चाहिये । जब अपनी सन्तानपर माताका प्रेम कम ज्यादा होता है तब उनके हृदयमें प्रतिहिंसा, द्वेष और पक्षपातका आविर्भाव होता है। भाई बहनके वीचमें पारस्परिक प्रेम नष्ट हो जाता है । सन्तान सुन्दर हो चाहे कुरूप हो, मूर्ख हो चाहे बुद्धिमान हो, उन सबका समान भावसे प्रतिपालन करना चाहिए। ऐसा करनेसे भाई वहनमें प्रेमका अमाव नहीं होता है। होना तो ऐसा चाहिए पर आज कल माताका प्रेम पुत्रीकी अपेक्षा पुत्रपर अधिक देखा जाता है । माताके लिए ऐसे भिन्न भावका होना अत्यन्त निन्दित है और यह भाव पुत्र और पुत्री इन दोनोंके लिए भी अहितका कारण है। (५) जव वालक रोने लगाता है और सोता नहीं है तब उसे मूत, पिशाच, वा सिंह, रीछ आदिका भय दिखाया जाता है पर वालकके लिए इससे बढकर कोई कुप्रथा अनिष्टकारी नहीं है।
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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