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________________ (४२) लगता है । जिस घरानेमें, जिस वंशमें, जिस जातिमें, जिस देशमें और निस राष्ट्रमें अनेकता विस्तार हो रहा है, समझलो कि उसका भविष्य अच्छा नहीं है । सामाजिक शक्तिको निर्मूल करनेवाली एक मात्र फूट है । जैननाति अनेकताके ही कारण रसातलमें पैठती जा रही है । आज यूरोपियन, पारसी, आर्यसमानी आदि सभी एकताके प्रभावसे दिनोंदिन उन्नतिके शिखरपर आरूढ हो रहे है ।पर खेद है कि जैन समाजने अभीतक अपनेको एकताके सूत्रमें गुम्फित नहीं किया । न मालूम कब वह शुभ दिन आवेगा जब सब जैनी एक चित्त होकर धार्मिक, लौकिक और पारमार्थिक उन्नति करनेमें संलग्न होंगे। दिगम्बर जैनियोंमें खण्डेलवाल जातिकी संख्या सबसे अधिक है। पर अविद्या और अनेकताकी मात्रा भी सबसे अधिक इसी जातिमें पाई जाती है । लश्कर, जयपुर, अजमेर, इंदौर भरतपुर, कुचामन इत्यादि नगरोंमें, जहा इस जातिकी बहुत संख्या है वहां विकराल फूट पड रही है । जातिमें तड़े पड़ गई हैं । एक तडवाले दूसरी तडवालोंको शत्रुभावसे देखते है और उनकी मानहानि करनेमें बिलकुल नहीं सकुचाते है। जिस खण्डेलवाल जातिमे प्राचीन समयमें पचो द्वारा नातीय झगड़े मिटाये जाते थे, आज वही जाति अपना निवटेरा करानेको दुसरेके द्वार द्वार ठोकरें खाती फिरती है । पहले जिसकी शक्ति इतनी बड़ी चढ़ी थी कि यदि जातिमें कोई कुलाडार व्यभिचारी होता तो जातिसे उसका बहिप्कार किया जाता था तथा और भी अन्याय प्रवृत्तिका उचित दण्ड देकर धार्मिक मर्यादा वनाई रक्खी जाती थी, पर आज वे सब बातें लोप होगई। पोंमें प्रपंच फैल गया । लौकिक लज्जा जाती रही । जो
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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