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________________ (२८) भी लेती जिससे दूसरोंको यह जान पडता था कि यह पूनमचन्दकी चहन वगैरेहमें किसीकी लडकी होगी। उस वक्त पूनमचन्द उसे शिक्षा देते कि प्रिये ! तुम मुझे इस तरह मत पुकारा करो। मैं तो तुम्हारा स्वामी हूं-पति हूं-और तुम मेरी पत्नी-स्त्री हो । पर वेचारी तारा इस रहस्य को क्या जाने कि पति पत्नी किसे कहते हैं और उनका पारास्परिक क्या सम्बन्ध है ? ___ हाय ! भारत ! तेरी कैसी दशा विगडी है ? संभव नहीं कि ऐसी स्थितिका दूसरे देशोंको भी कभी सामना करना पड़ा होगा ? स्वार्थियोंने तुझे कितने गहरे गड्ढेमें डाल दिया है वह लिखना अर. कठिन है । जो तेरी सन्तान ब्रह्मचारिणी, वलिष्ठ और पूर्ण जिते न्द्रिय हुआ करती थी आज वही व्यभिचारिणी, निर्बल और इन्द्रियोंकी दास होगई है । जो विवाह केवल वर और कन्याके सुखके लिये हुआ करता था आज उसका विल्कुल उल्टा परिणाम दीख पडता है । जव साठ ‘साठ वर्षके बुड्ढेके साथ आठ आठ नौ नौ वर्षकी बालिकायें विवाह दी जाती है तब वह कैसे सुखका मूल हो सकता है ? अथवा जहां सोलह वर्षकी कन्या और चौवीस वर्पके लडकेका विवाह हुआ करता था वहां वे अब बचपन और अबोध अवस्थाहीमें विवाह दिये जाते है। और फिर उनसे अपने वंशकी मर्यादाके सनीवित रखनेकी आशाकी जाती है पर यह संभव नहीं कि उनके द्वारा हमारा देश बलिष्ठ और कर्तव्य परायण हो सके ? अपक्व अवस्थामें विवाह हुए स्त्री पुरुषोंकी सन्तान बलवान नहीं होती और न उनके द्वारा कुलपरम्परा ही चल सकती है? न जाने ये कुरीतियां
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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