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________________ ( २७ ) ( ७ ) भाग्य फूट गया । पूनमचन्दने भी अपना विवाह कर लिया । उनकी स्त्रीका नाम तारा है । ताराकी अवस्था अभी कुल आठ वर्षके लगभग है । उसे किसी तरहका ज्ञान नहीं है । वह निरी बालिका है। I 1 ज्येष्ठका महिना है । गर्मीकी प्रखरतासे पृथ्वी अग्निकी भाति भधक रही है । पशु पक्षियोंकी भी हिम्मत नहीं कि वे अपने आवास स्थानसे बाहिर निकल सकें । इस समय पूनमचन्द जल्दी जल्दी पावकीं डग बढाते हुए घरकी ओर बढ़े हुए चले आते हैं । उनकी तबियत गर्मी के आतापसे बिगडी हुई दिखाई पडती है । वे आये और घरमें घुसे कि उन्हें उल्टी और उसीके साथ दस्त होना आरभ होगया । घरके नोकर चाकर दौड धूप करने लगे । वैद्य बुलाये गये । दवा दीगई पर परिणाम कुछ भी नहीं निकला आखिर उनकी जीवनलीला समाप्त होगई । बेचारी ताराके भाग्यका तारा अस्त होगया । वह जन्मभरके लिए अनाथिनी होगई । हाय ! उसके साथ कैसा अनर्थ किया गया कैसा राक्षसी कृत्य किया गया ? जिसका उसे यह भयंकर फल भोगना पडा । अभीतक तो वह यह भी न जान पाई थी कि विवाह किसे कहते है उसे यह भी नहीं मालूम था कि पूनमचन्द मेरे कौन होते हैं पर हा इतना जरूर जानती थी कि वे बूढे है, मेरे घरपर दो चार वार आये है, वहीं जीमें है और वहीं रहे भी है । इस - लिए माता के कोई रिश्तेदार होंगे, तभी माताने मुझे इनके साथ 2 2 2 2 जदी है । वह कभी कभी तो पूनमचन्दको ऐसे ही सम्बोधनसे पुकार
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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