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________________ ( १९) कुछ गडबड करें । पर वे भी एक वक्तके भोजनसे ठण्डे किये जा सकते हैं। फिर क्यों मै अपना विचार बदलूं। विवाहमें रुपया वहुत कुछ खर्च करना पडेगा । अस्तु । इसकी कुछ परवा नहीं । हजार, दो हजार, चार हजार, दश हजार भी क्यों न खर्च हो जायँ, करूगा । पर विवाह करना कभी नहीं छोड़गा। रूपया तो मैंने अपने आरामके लिए ही कमाया है । फिर जब उनसे मैं ही लाभ नहीं उठाऊगा तब क्या मैंने यह मजूरी दुसरे. के ही लिए की है। वे वडे मूर्व हैं जो पास पैसा होते हुए भी आनन्दोपभोगसे वञ्चित रहते है । मुझे यह मन्जूर नहीं । मैं अपने पैसाका उपभोग करूंगा। लोग कहते है कि वृद्धावस्थामें विवाह करना बुरा है, पर यह उनकी भूल है । वे अपने स्वार्थकी और देखते तो कभी ऐसा नहीं कहते । अपना भला सब चाहते है फिर मैं ही क्यों दुख देहूं । पनमचन्दन अपनी बुरी वासनाके वश हो बुराई भलाईकी ओर कुछ भी ध्यान नहीं दिया। जातिकी और लोक लजाकी, कुछ परवा न रक्खी । मचमुत्र जब मनुष्य कामके पाशमें बद्ध हो जाता है तब उसे अपनी, अपनी जातिकी, और अपने देशकी हानि लाभका कुछ विचार नहीं होता है । हो कहां से, जब कुछ विवेक बुद्धि हो तब ही न ! सो उनकी विवेकबुद्धिको तो काम पहले ही हर लेता है। - पूनमचन्टका अभी एक बलासे तो पिण्ड छूटा ही नहीं है कि एक और वला स्वयं उन्होंने अपने ऊपर उठाली है। अभी उन्हें अपने सुपुत्र मोतीलालका विवाह करना तो वाकी ही है। उसके लिए
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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