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________________ ( १८ ) वैसे उनकी उत्कण्ठा प्रबल हो रही है। उसके पूरी करनेका उनके पास कुछ साधन नही दखि पड़ता। इससे उनके मनोविकार और भी भयंकरता धारण कर रहे हैं । वृद्धावस्थामें यद्यपि इद्रियां शिथिल हो जाती है, उनमें किसीतरह की स्फूर्ति नहीं रहती । पर इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि वृद्धावस्या के मनोविकार पहलेसे भी कहीं अधिक उत्तेजित हो जाते है। युवा पुरुष यदि हिम्मत करे तो उन्हें दवा सकता है, पर वृद्ध पुरुपकी यह ताकत नहीं कि वह अपने हृदयके उदीप्त विकारोंका दमन कर सके । पूनमचन्द्र भी वृद्ध हैं, पर आजके गानेने, जो कि उनकी स्त्रीके मधुर स्वरसे मिलता हुआ था, उन्हें विकल कर दिया । इस ढलती उमरमे आज फिर उन्हें अपने आज फिर उन्हें अपने विवाहका ध्यान आया । उनके हृदयमें बुरे भले विचारोंका बड़ा भारी घमासान युद्ध मचा। वे कभी तो जाति वा लोक लज्जाके भयसे विवाहके विचारको रद्द कर डालते थे और जैसे ही उन्हें उस सुन्दर गानेकी आवाजका ध्यान आता तत्र फिर विवाह के लिए तैयार हो उठते थे । बहुत तर्क वितर्कके बाद उन्होंने निश्चय कर लिया कि जो कुछ हो विवाह करना और अवश्य करना । फिर चाहे लोग बुरा ही कहें ? कहांतक वे बुरा कहेंगे ? एक दिन, दो दिन, का दिन, महीना, दो महीना, वर्ष दो वर्ष । आखिर तो उसकी भी सीमा हैं । और फिर उससे मेरा विगडेगा ही क्या ? एकके कामको एक बुरा कहता है और एक भला । पर इस भय से क्या अपना विचार छोड देना चाहिये ? नहीं । हा संभव है जातिके लोग
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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