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________________ ( १९ ) रक्खो और पवित्र काम करो, पर हम अपनेको कुछ पवित्र करनेकी अथवा पवित्र काम के करनेकी कोशिश करते हैं या नहीं ! इन बातों पर क्या कभी हमारा ध्यान जाता है ' कभी विवेकबुद्धिका विकाश होता है ? मै कहूंगा, कभी नहीं । क्योंकि हमने तो अपने कर्त्तव्यकी समाप्ति केवल सुबह दोचार मिनटके लिए मन्दिरमें जाकर परमात्माकी मूर्त्तिका निरीक्षण करने मात्रसे समझ रक्खी है न फिर क्यों हमें इन बातोंपर विचार हो ? क्यों हम अपनेको अधिक कष्टके गड्ढे में डालें' देश या जाति कल रसातलमें पहुचते हो तो हमारी ओरसे आज़ ही पहुंच जायँ । हमे क्या ज़रूरत जो हम दूसरोंकी बला अपने शिरपर उठायें ? हाय ! समयकी बलिहारी है ! नहीं तो क्यों आज हम लोगोंमें इतनी संकीर्ण बुद्धि और अन्यायपरता होती ! हमारे पूर्वजोंने ससारके हित के लिए कोई काम करता बाकी नहीं रक्खा था । पर हमें सत्र कण्टकसे दिखाई पड़ते हैं । पाठक ! आप विचारके साथ अपनी दृष्टिको दूर तक फैला कर देखेंगे तो आपको ज्ञात होगा कि हमारे भाइयोंकी कैसी भयानक परिस्थिति है। उनका कर्त्तव्य तो कितना था और वे क्या समझे हुए बैठे हैं। क्या उनकी इस भूलका कुछ ठिकाना है ! क्या कभी वह पवित्र दिन आवेगा जब कि हमारे भाई अपनी इस भूलको जानकर सारे संसार के हितका उपाय करेंगे ! परमात्मा ! दयासिन्धु ! | उन्हें सुबुद्धि प्रदान कीजिए। जिससे कि वे अपने कर्त्तव्यको समतें और उसीके अनुसार चलनेके लिए कार्यक्षेत्रमें निर्भय होकर कूद पढें ।
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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