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________________ यह प्रस्ताव स्पष्ट बतला रहा है कि प० फूलचन्द्रजी की उक्त पुस्तक पर विद्वानो मे सैद्धान्तिक मतभेद था। इसी मतभेद के कारण मैंने तभी यह निर्णय किया था कि जैन सिद्धात के सरक्षणार्थ में उक्त पुस्तक की मीमासा करने का प्रयत्न करूंगा। तदनुसार उस पुस्तक के प्रकाश मे आने पर मैंने "जैनतत्त्वमीमासर की मीमासा" नाम से उस पुस्तक की समालोचना के रूप मे एक लेखम ला प्रारम्भ की थी जो २३ फरवरी १९६१ से जैनगजट पत्र में प्रकाशित होती रही। इस लेखमाला के लिखने मे मेरा क्रम यह था कि जो मैं लिखता था वह जैनगजंट मे प्रकाशनार्थ भेज देता था और तब आगे का लिखना प्रारम्भ करता था। 'यह क्रम करीब १३-२ वर्ष तक चला, लेकिन पश्चात् जैनगजट की उपेक्षावृत्ति के कारण मुझे आगे लिखना बन्द कर देना पड़ा जो अभी तक बन्द है। प० फूलचन्द्र जी द्वारा "जैनतत्त्वमीमासा" लिखो जाने के पूर्व से ही जैन मान्यताओ के सम्बन्ध मे कानजी स्वामी के साथ विद्वानो का तीन मतभेद था जिसे समय-समय पर विद्वत्परिषद ने प्रगट किया और इसी विरोध के कारण विद्वत्परिषद ने दूसरी मे कानजी स्वामी से सैद्धान्तिक चर्चा करने की योजना बनाने के लिये पूज्यपाद प० गणेश प्रसाद जी वर्णी, के तत्त्वावधान मे विद्वत्सम्मेलन बुलाया था, लेकिन इसके पश्चात् जब ५० फूलचन्द्र जी की 'जनतत्त्वमीमासा' पुस्तक प्रकाश मे आयी तो सम्मेलन द्वारा किया गया निर्णय कार्यकारी नही हो सका तथा प० पूलचन्द्र जी के साथ चर्चा करने की बात तीव्रता के साथ सामने आई, लेकिन वह भी शिथिल पड़ गयी।
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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