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________________ १३ ऊपर जो पं० फूलचन्द्रजी की दृष्टियो का संग्रह किया गया है उनमे कहा- कहा मतभेद है ? इसे स्पष्ट किया जा रहा है । (१) वस्तु मे प्रतिक्षण जो यथायोग्य स्वभाव अथवा विभाव रूप परिणमन होता है वह वस्तु की अपनी स्वभावगत योग्यता के आधार पर ही होता है अर्थात् प्रत्येक वस्तु मे होने वाला कोई भी परिणमन ऐसा नही है जो उस वस्तु की अपनी स्वभावगत योग्यता के अभाव मे केवल पर द्वारा निष्पन्न किया जाता हो प ० फूलचन्द्रजी की यह दृष्टि निर्विवाद है, परन्तु वस्तु के सभी परिणमन केवल उस वस्तु की स्वभावगत योग्यता के वल पर ही निप्पन्न होते हो - ऐसा नही है क्योकि आगे युक्ति, अनुभव और आगम के आधार पर यह बतलाया जायगा कि प्रत्येक वस्तु मे दो प्रकार के परिणमन हुआ करते है । उनमे से एक प्रकार के परिणमन तो वे है जो केवल वस्तु की स्वभावगत योग्यता के बल पर ही निष्पन्न होते हैं । इन्हे आगम मे 'स्वप्रत्यय परिणमन' नाम दिया गया है । दूसरे प्रकार के परिणमन वे हे जो वस्तु की स्वभावगत योग्यता के आधार पर निष्पन्न होकर भी अनुकूल परवस्तु की सहायता से ही निष्पन्न होते हैं | इन्हे आगम मे 'स्वपरप्रत्यय परिणमन' नाम दिया गया है । कोई भी परिणमन केवल परप्रत्यय नही होता - यह निर्विवाद है । I (२) १० फूलचन्द्रजी की जो यह दृष्टि है कि वस्तु का परिणमनस्वभाव स्वत सिद्ध होने से अनादि है यह दृष्टि भी निर्विवाद है और वे जो कहते है कि वस्तु मे उस स्वत सिद्ध ओर अनादि परिणमन स्वभाव के आधार पर होने वाला विवक्षित परिणमन तभी निष्पन्न होता है जब वह वस्तु उस विवक्षित परिणमन से अव्यवहित पूर्वक्षणवर्ती पर्याय में पहुँच जाती है सो
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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