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________________ ३६० पद्य का उद्धरण दिया है "तादृशी जायते बुद्धि यवसायश्च तादृश । सहायास्तदृश. सन्ति यादृशी भवितव्यता।" श्रीमद्भट्टाकलङ्क देव का वल पाकर इस पद्य का उद्धरण प० फूलचन्द्र जी ने भी अपने "कार्य की सिद्धि केवल समर्थ उपादान से ही हो जाया करती है निमित्त तो वहा पर अकिंचित्कर हो रहा करते हैं।" इस पक्ष की पुष्टि के लिये जैनसत्त्वमीमासा के पृष्ठ ६६ पर दिया है और इसका अर्थ भी उन्होने वही पर यह किया है कि "जिस जीव की जैसी भवितव्यता (होनहार) होती है उसकी वैसी ही बुद्धि हा जाया करती है, वह प्रयत्न भी उसी प्रकार का करता है और उसे सहायक भी उसी प्रकार के मिलते हैं।" इस पद्य को लेकर मुझे यहाँ पर इन वातो का विचार करना है कि श्रीअकलङ्क देव ने उक्त पद्य का उद्धरण अपने ग्रन्थ मे किस आशय से दिया है तथा जैन-दर्शन मे मान्य कारण व्यवस्था के साथ उसका एक तो मेल बैठता ही नही है और यदि मेल बैठता भी है तो किस तरह वैठता है ? इतना ही नही, इसके साथ मुझे इस बात का भी विचार करना है कि उसकी सहायता से प० फूलचन्द्र जी कारण व्यवस्था सम्बन्धी अपने पक्ष की पुष्टि करने मे कहाँ तक सफल हो सके है ? स्वामी समन्तभद्र ने अपनी कृति आप्तमीमासा मे आप्त की मीमासा के प्रसङ्ग को लेकर जिनशासन मे मान्य अनेकान्तात्मक तत्त्व व्यवस्था की पुष्टि की है । और इसी प्रसङ्ग मे
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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