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________________ ३३६ पर है । इतना ही नही सशय, विपर्यय या अनध्यवसित रूप मिथ्या अर्थ का भी अभाव यहाँ पर है । इस तरह उक्त पाँच प्रकार के अर्थों में से किसी भी प्रकार के अर्थ का प्रतिपादन न कर सकने के कारण “ बन्ध्या का पुत्र ", " आकाश के फूल" तथा “गधे के सीग” ये तीनो वचन निरर्थक ही सिद्ध होते हैं । , यहाँ इतना विशेष और जानना चाहिये कि यदि कोई बन्ध्या किसी अन्य के पुत्र को गोद ले ले, इसी प्रकार सभी वस्तुएँ आकाश पर आधारित होने से आकाश को फूलो का भी आधार मान लिया जावे तथा इसी प्रकार गधे के सिर पर 'सींग बाँध दिये जावे तो निमित्त तथा प्रयोजन का सद्भाव सिद्ध हो जाने से "बन्ध्या का पुत्र", "आकाश के फूल" तथा " गधे के सीग" ये तीनो वचन फिर निरर्थक न रहकर उपचरित अर्थ के प्रतिपादक सिद्ध हो जाते हैं । प० फूलचन्द्र जी का कहना है कि " जो वचन अपने अभिधेय अर्थ का प्रतिपादन करता है वह तो सत्यार्थ है और जो वचन अपने अभिधेय अर्थ का प्रतिपादन नही करता वह असत्यार्थ है”, परन्तु यहाँ यह ध्यान रखना चाहिये कि उपचरित शब्द की असत्यार्थता इसलिये नही है कि वह अपने अभिधेयार्थ का प्रतिपादन नही करके निरर्थक ही है अपितु उसकी असत्यार्थता इसलिये है कि वह मुख्य अभिधेय का प्रतिपादन करके उपचरित अभिधेय का ही प्रतिपादन करता है । इसी तरह लाक्षणिक शब्द को भी इसलिए असत्यार्थ मानना चाहिये कि उसका प्रतिपाद्य अर्थ अभिधेय न होकर
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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