SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८ तरह दो भेदो मे विभक्त है । अत जो ससारी जीव शुद्धशक्ति वाले है उनको तो मुक्ति प्राप्त होने की सम्भावना है और जो अशुद्धि शक्ति वाले ससारी जीव हैं वे हमेशा समारी ही बने रहते हैं । इसका आधार यह है कि स्याद्वादी जैनियो ने सम्पूर्ण ससारी जीवो को मीमासको की तरह हमेशा अशुद्ध रहने वाले नही स्वीकार किया है इसका कारण यह है कि उन्होने समस्त ससारी जीवो मे पायी जाने वाली कामादि रूप अशुद्धि को जीव का स्वत. सिद्ध भाव मानने का निषेध किया है । इसका भी कारण यह है कि उनमे कभी-कभी जो कामादिक से विरक्ति भाव देखा जाता है वह कामादिको जीव का स्वत सिद्ध भाव मानने के विरुद्ध है । इसी प्रकार जैनियो ने सम्पूर्ण जीवो को साख्य की तरह हमेशा शुद्ध रहने वाले भी नही स्वीकार किया है क्योकि जो जीव हमेशा शुद्ध रहने वाला होगा उसमे प्रकृति का ससर्ग होने पर भी कामादि की उपलब्धि होना असम्भव होगा । यदि कामादि की उपलब्धि प्रकृति मे ही मानी जाय तो फिर पुरुष (जीव ) को मानना ही व्यर्थ हो जायगा । इसका कारण यह है कि तब प्रकृति मे कामादि की उपलब्धि की तरह कामादि के फल का उपभोग भी स्वीकार करना अनिवार्य हो जायगा । इसका भी कारण यह है कि अन्य ( प्रकृति ) मे तो भोगाभिलाषा उत्पन्न हो और अन्य ( पुरुष ) भोग का उपभोक्ता हो - ऐसा मानना युक्ति सगत नहीं है । मीमासक और साख्य मतवादियो को मान्य उक्त दोनो विकल्पो के अलावा तीसरा यह विकल्प भी जैनियो को प्रमाण रूप से मान्य नही है कि सम्पूर्ण ससारी जीव भविष्य मे कभी भी मुक्ति प्राप्त करने की योग्यता रखने वाले अर्थात् शुद्धि शक्ति के धारक भव्य ही होते है । क्योकि इस विकल्प को स्वीकार करने से ससार की
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy