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________________ (३१) दूसरे ही शास्त्र माने हैं। लेकिन हमारे मूलसूत्र में लिखी हुई बहुतसी बातें उनमें नहीं पाई जाती हैं। जैसे महलीपुत्र गोशाल का सम्बन्ध * मूलसूत्र में है, किन्तु दिगम्बरों के किसी ग्रन्थ में यह बात नहीं लिखी है। महली गोशाल का वृत्तान्त चौद्धों के 'पिटक' ग्रन्थों में भी पाये जाने से यह सिद्ध होता है कि यह मूलसूत्र वही हैं। हमारे आगमों की रचना का समय २२०० बाईस सो वर्ष से भी अधिक प्राचीन है, यह वात आचाराङ्गसूत्र के अगरेजी तर्जुमे की भूमिका [प्रिफेस] में लिखी हुई है। दिगम्बरों के साथ हमलोगों का पदार्थ के मन्तव्य में विशेष फेरफार नहीं है, किन्तु क्रियाविभाग में बहुत फेरफार है। दोनों पक्षों में चौवीस तीर्थंकर + माने गये हैं और पद्रव्य, दो प्रमाण, * मह्वलीपुत्र गोशाल ने भी महावीरस्वामी के समय में 'आजीविक' पन्थ निकाला था। इसका विशेष वृत्तान्त भगवतीसूत्र में जिज्ञासुओं को देखना चाहिये। + इस वर्तमान चौवीसी के तीर्थङ्करों के नामे ये है श्रीऋपभदेव १ अजितनाथ २ संभवनाथ ३ अभिनन्दनस्वामी ४ सुमतिनाथ ५ पद्मप्रभ ६ सुपार्श्वनाथ ७ चन्द्रप्रभ ८ सुविधिनाथ ९ शीतलनाथ १० श्रेयांसनाथ ११ वासुपूज्यस्वामी १२ विमलनाथ १३ अनन्तनाथ १४ धर्मनाथ १५ शान्तिनाथ १६ कुन्थुनाथ १७ अरनाथ १८ मल्लिनाथ १९ मुनिसुव्रतस्वामी २० नमिनाथ २१ नेमिनाथ २२ पार्श्वनाथ २३ महावीरस्वामी २४ ।
SR No.010367
Book TitleJain Tattva Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Upadhyay Jain Granthamala Bhavnagar
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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