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________________ (३८) स्याद्वाद का स्वरूप प्रत्यक्ष करके उसको संसार में प्रकट करदिया, उन्हीं ने परमाणुवाद को भी केवलझान से प्रत्यक्ष करके सिद्धान्तों में स्पष्ट रूप से दिखलाया है। इसलिये जैनशास्त्रानुसार परमाणु की व्याख्या को जो तत्ववेत्ता (समभाव दृष्टि से ) देखेगा, वह डॉक्टर याकोबी महाशय के वचनों को जबर स्वीकार करेगा। - पूर्वोक्त प्रत्यक्ष को जैन शाखकारोंने इस तरह माना है कि जो इन्द्रिय और मन आदि की सहायता के विनाही साक्षात् आत्मा को ज्ञान होता है, वही प्रत्यक्ष है। किन्तु इतर दर्शनकारों के मत से घट पटादि का जो इन्द्रियद्वारा प्रत्यक्ष होता है, उसको तो जैनशास्त्रकार परोक्ष मानते हैं। अथवा बालजीवों को समझाने के लिये उसे सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष भी कहते हैं। इतना धर्म, और उसके कारण (स्यादवाद) का . स्वरूप दिखलाकर अव अपनी पूर्वोक्त प्रतिज्ञानुसार थोडासा अर्हन् देव का उपदेश (देशना) भी दिखलाना चाहता हूँ अर्हन् देव ने भव्य जीवों के लिये यह उपदेश दिया है कि जो पुरुष इस असार संसार को सार मानता खण्डन करके पीछे निर्भय रीति से विशाल दृष्टिपूर्वक उसका प्रतिपादन (मण्डन ) किया हुआ है । इसलिये संपूर्ण ही देखना उचित है।। * Encyclopaedia of Religion and Ethics, rol, ii; pp. 199 sq.
SR No.010365
Book TitleJain Shiksha Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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