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________________ पुरुष सदोष है, अतएव समाज और परिवार में समझौते के बिना एक पल भी नहीं चला जा सकता। जैनेन्द्र पति-पत्नी के जीवन भर के सम्बन्ध-विच्छेद को उचित नहीं मानते। उनके अनुसार किन्हीं विषम परिस्थितियो में पति-पत्नी का एक साथ रहना पारस्परिक सहानुभूति को पूरी तरह नष्ट करने वाला हो जाता है, तब उन्हे कुछ समय तक एक दूसरे से अलग रहना चाहिए। अलग रहने में पारस्परिक सहृदयता पूर्णतया नष्ट नहीं होती, केवल वैचारिक तनाव बना रहता है। तनाव में दूरी उपयुक्त है, किन्तु सम्बन्ध तोड़ देने से भविष्य में प्रेम की सम्भावना का प्रश्न नहीं उठता। उनके अनुसार विवाह का मूल प्रेम है। प्रेम के अभाव में वह सुखी जीवन की कामना ही नहीं करते। “विच्छेद' कहानी में उन्होंने वैवाहिक जीवन में उत्पन्न होने वाले तनाव से बचने के लिए समझौते को आवश्यक माना है। वस्तुतः जैनेन्द्र के पात्रों को वैवाहिक जीवन में चाहे कितना ही कष्ट क्यों न उठाने पड़े, किन्तु वे सम्बन्ध विच्छेद के लिए न्यायालय के दरवाजे नहीं खटखटाते। व्यक्तिगत सम्बन्धों में न्याय को आधार बनाकर वे पारस्परिक निष्ठा को नष्ट करना श्रेयष्कर नहीं समझते। कभी-कभी विवाह उनके समक्ष विवशता बन जाता है, किन्तु वे अपने आदर्शों से विचलित नहीं होते। यही कारण है कि उनकी प्रेमिकाएं पति के प्रति घृणा और उपेक्षा का भाव नहीं रख पाती। उनके पति पात्र भी अधिकतया बहुत नम्र थे। वे आन्तरिक पीड़ा की पूंजी सजोये हुए सारा जीवन व्यतीत कर सकते हैं, किन्तु सम्बन्ध विच्छेद की कल्पना भी नहीं करते। “सुखदा' में पति-पत्नी एक दूसरे से दूर चले जाते हैं, किन्तु प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध विच्छेद नहीं करते। ‘त्यागपत्र' में मृणाल सम्बन्ध विच्छेद को आवश्यक नहीं समझती। पति के द्वारा घर से बाहर निकाल दिये जाने पर ही वह बाहर जाती है। 'व्यतीत' की चन्द्रकला ही ऐसी पत्नी है जो अपने पति से अलग होकर पुनर्विवाह करती है और सुख भोग प्राप्त करती है चन्द्रकला अपने पति से [60]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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