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________________ जैनेन्द्र ने समाज की परिधि के अन्तर्गत विवाह, परिवार और जीवन की विविध समस्याओं पर अपने विचारों को व्यक्त किया है। इन क्षेत्रो मे प्रायः जीवन को संतुलित रखने के लिए अनेक प्रयास करने पड़ते हैं। जिनका अभाव जैनेद्र के पात्रों का जीवन दूभर करता है और उन्हें आस्था-अनास्था के बीच भटकने को छोड देता है। जैनेन्द्र ने ऐसी विचित्र समस्याओं के कतिपय समाधान भी प्रस्तुत किए है। विवाह-विच्छेद जैनेन्द्र ने जिस प्रकार प्रेम-विवाह की मान्यता नहीं दी है, उसी प्रकार विवाह-विच्छेद (तलाक) का भी पूर्ण रूपेण निषेध किया है। कथाकार ने सामाजिक समस्याओं को आध्यात्मिक स्तर पर हल करने का प्रयत्न किया है। पति-पत्नी सामाजिक बन्धनों में बँधे होते हैं। प्रत्येक दम्पत्ति के लिए यह आवश्यक नहीं कि वे एक विचारधारा के हों, ऐसी स्थिति में दोनों को एक दूसरे के दृष्टिकोण का आदर करना पडता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से न अच्छा है न बुरा। जैनेन्द्र के अनुसार - 'मेरा मानना है कि दुनिया में कोई दो व्यक्ति ऐसे नहीं हुए जो एक दूसरे के लिए जन्में कहे जा सकें। खिंचाव और तनाव तो स्त्री-पुरुष में प्रकट और सहज है। सामंजस्य इसलिए सहज नहीं है। उसे साधना होता है। उसके लिए संयम और अम्यास की जरूरत होती है। यदि स्त्री-पुरुष में एक दूसरे के दोषों को देखकर सम्पन्ध-विच्छेद की घटना घटित होती है तो उसे स्वाभाविक नहीं माना जा सकता। जैनेन्द्र के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति चाहे स्त्री हो या 35 जैनेन्द्र कुमार - काम, प्रेम और परिवार, पृष्ठ - 66 [59]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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