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________________ विवाह के पूर्व ही प्रेम करने लगती है, जिसे आगे गृहिणी के आदर्शों में ढली भाभी स्वीकार नहीं कर पाती और उसकी शादी एक बड़ी आयु के पुरुष से कर दी जाती है। इस सन्दर्भ में जैनेन्द्र के विचार द्रष्टव्य हैं - _ 'मृणाल' नये घर में समझौता न कर सकी और प्राय. अपने पति के हाथ बेतों से मार खाती है और अन्त में यह भेद खुल जाने पर कि मृणाल शादी से पूर्व शीला के भाई जो अब कहीं सिविल सर्जन है तथा आजन्म अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा किए हुए हैं, से प्रेम करती थी, पति उसे घर से निकाल देता है। मृणाल अपने भतीजे प्रमोद से उस सम्बन्ध में अपना स्पष्टीकरण कर देती है-“मैं स्त्री धर्म को पति धर्म नहीं मानती। क्या पतिव्रता को यह चाहिए कि पति उसे नहीं चाहता तब भी वह अपना भार उस पर डाले रहे। वह मुझे नहीं देखना चाहते, यह जानकर मैंने उनकी आंखों के आगे से हट जाना स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा मैं तेरा पति नहीं हूँ तब मैं किस अधिकार से अपने को उन पर डाले रहती। पतिव्रता का यह धर्म नहीं है। सेक्स की समस्या स्त्री-पुरुष के लैंगिक सम्बन्धों का अध्ययन सेक्स के अन्तर्गत है। प्रेमचन्द युगीन उपन्यासों में अथवा उससे भी पूर्व स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की सामाजिक पृष्ठभूमि साहित्यिक विषय वस्तु का प्रधान अंग थी, किन्तु उत्तर काल में जबसे मनुष्य का अध्ययन औपन्यासिक सामग्री का आधार बना, तबसे इन सम्बन्धों का चित्रण मूख्य रूप से लैंगिक सम्बन्धों के घेरे में विश्लेषण पाने लगा। यही कारण है कि 28 जैनेन्द्र कुमार - त्यागपत्र, पृष्ठ-28 29 जैनेन्द्र कुमार - त्यागपत्र, पृष्ठ -62 [53]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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