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________________ ‘संस्कृति, परम्परा और इतिहास जब लम्बे सम्बद्ध होते हैं, तो दमघोंटू बन जाते हैं और वर्तमान को ठीक से सांस नही लेने देते । ऐसी स्थिति में जीवन गत परिस्थितियों से प्रसूत प्रेरणा क्रान्ति करती है और परम्परा के स्रोत में अभिनव परिवर्तन आ जाता है। 12 परम्परा का सम्बन्ध अतीत से होता है तथा पृष्ठभूमि का वर्तमान से। किन्तु अतीत और वर्तमान, प्राचीन और नवीन सापेक्षता में देखे जा सकते है । कर्तव्य और अधिकार की भाँति परम्परा और पृष्ठभूमि में 1 अनिवार्य सम्बन्ध है । 13 कर्तव्य से मुक्ति मिलना कठिन है, अधिकार का आभास तब होता है, जब उसका प्रयोग किया जाय । कर्तव्य के माध्यम से ही अधिकार प्राप्त होता है, इसी तरह परम्परा के आधार पर ही पृष्ठभूमि निर्मित हुआ करती है । पृष्ठभूमि के अनुसार परम्पराएँ परिवर्तनशील होती हैं तथा प्रत्येक वर्तमान अपने भूतकाल का परिणाम हुआ करता है। परम्परा आदर्शोन्मुखी होती है और पृष्ठभूमि यथार्थोन्मुखी होती है- इन दोनों पृथक-पृथक धाराओं का संगम उस समय होता है, जब परम्परा परिस्थिति से प्रभावित होती है । परम्परा को पृष्ठभूमि से समझौता करना पड़ता है और यह युग प्रतिनिधि साहित्यकार के द्वारा ही सम्भव हो सकता है। परम्परा और पृष्ठभूमि के बिना साहित्य का अपना अस्तित्व संदिग्ध बना रहता है। अतः वह न तो परम्पराओं की उपेक्षा कर सकता है और न ही पृष्ठभूमि से अपना सम्बन्ध अलग कर सकता है। साहित्य मानव-जीवन एवं उसके अनुभव की छवि है, किन्तु उसकी अविरल भावधारा औचित्य की सीमा को लाँघ जाती है। जीवन और जगत का सत्य विभिन्न रूप धारण कर साहित्य में साकार रूप से अभिव्यक्त होता है । राजनैतिक, समाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं 12. डॉ० रामधारी सिंह दिनकर - साहित्यमुखी, पृष्ठ 11 13. गोपाल दत्त सारस्वत - आधुनिक काव्य परम्परा तथा प्रयोग, पृष्ठ - 11 [13]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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