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________________ पृष्ठभूमि की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है । पृष्ठभूमि सदैव वर्तमान से जुड़ी होती है। प्रत्येक आने वाला और विगत अपने समय का वर्तमान है और उस वर्तमान के साथ पृष्ठभूमि जुडी रहती है। गतिशील समाज में पृष्ठभूमि में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है । साहित्यकार एक प्रयोगवादी व्यक्ति होता है, अतएव वह युगीन पृष्ठभूमि के अनुसार अपने प्रयोग क्रियान्वित करता है । वह साहित्य में पृष्ठभूमि के अनुसार अपने प्रयोग क्रियान्वित करता है । वह साहित्य में नवीन प्रयोग पृष्ठभूमि के प्रति जागरूक होकर करता है। साहित्यकार का सबसे बड़ा दायित्व यह है कि वह पृष्ठभूमि के प्रति ईमानदार हो तथा जनजीवन का यथार्थ चित्रण युग के अनुकूल प्रस्तुत करें। सफल साहित्यकार युग-चितेरा होता है। वह किसी भी अवस्था में युग की पृष्ठभूमि की अवहेलना नहीं कर सकता । इस प्रकार युग चेतना और पृष्ठभूमि में घनिष्ठ सम्बंध है । परम्परा और पृष्ठभूमि परम्परा और पृष्ठभूमि एक दूसरे से सम्बद्ध होते हुए भी एक दूसरे से पृथक हैं। परम्पराओं का क्षेत्र सीमित होता है, जबकि पृष्ठभूमि का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है। परम्पराओं की नींव प्राचीन मान्यताओं पर टिकी होती है, जीर्ण-शीर्ण परम्परायें विनष्ट होती हैं और उनके स्थान पर नवीन परम्पराओं का सृजन होता है । इस प्रकार परम्परा जब रूढ़ि का रूप ग्रहण कर लेती है, तो उसका साथ युगीन परिस्थितियों से अलग हो जाता है । ऐसी रूढ़ियों से जकड़ा हुआ साहित्य प्राणविहीन एवं असत्य हो जाता है । रामधारी सिंह 'दिनकर' का कथन है - [12]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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