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________________ पर स्वयं को चुक जाने की स्थिति में पाकर अपने गत जीवन को प्रस्तुत करते हैं। पूर्वदीप्ति से कथा में संक्षिप्तता की सिद्धि होती है, क्योंकि घटनाएँ व प्रसंग स्वयं ही घट जाते हैं। पूर्वदीप्ति प्रधान उपन्यास न होने पर भी ‘परख' में सत्यधन का प्रारम्भिक जीवन काफी बाद में लाया गया है। 'कल्याणी' में डॉ० कल्याणी वकील साहब के सामने आपना वर्तमान जीवन प्रस्तुत करती है। जैनेन्द्र के कथा-साहित्य के वस्तु-शिल्प में नाटकीय विधियों का प्रयोग भी मिलता है। प्रत्यावलोकन शैली के कारण पात्र का अतीत वर्तमान बन जाता है। 'व्यतीत' में जयन्त अपनी कहानी सुनाता-सुनाता झट से क्रियाओं का काल बदल देता है-'यह नहीं कि मैं समझ नहीं सका x x x x x वह अभाव कहाँ से आ गया था ? बीज तो था नहीं, किस में यह फल आया था? याद कर सकता हूँ कि कुछ हँसी आ गई थी। कहा x x x x x 2 सुखदा अपने बीते जीवन में पति-सम्बन्धों की चर्चा करते वर्तमान की स्थिति से पाठकों को फिर से अवगत करा देती है 'स्वामी ने कहा, तुम बनाओगी ? नहीं, चलो आज किसी रेस्तरां में खायेंगे।' 'लेकिन उनकी इस तरह की बात पर मेरे लिए असम्भव हो गया है कि मैं रोटी बनाने के मौके को छोड़ दूँ। वह संध्या मुझे याद आती है। लेकिन किस बात पर उसे याद करूँ। आज यहाँ इतनी दूर आकर बड़ी लगने वाली घटनाएँ तुच्छ मालूम होती हैं x x x x x हाय आज कैसा अचरज है x x x x x*28 26 It is not something in the past bur something going on now in the immediate persent. And this is where the dramatic novelist takes clue from drama. Even in the novel there is something that is felt as the dramatic present. (J.W.Beach. the twentienth century novel. - Page-147) 27 जैनेन्द्र कुमार - व्यतीत, पृष्ठ -95 28 जैनेन्द्र कुमार - सुखदा, पृष्ठ - 32 [168]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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