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________________ केवल अभिव्यक्त करना चाहता है, अपितु उसे इस प्रकार से अभिव्यक्त करना चाहता है कि वह एक सम्पूर्ण सफल, सार्थक तथा सुन्दर कलाकृति बने । कलाकृति की अभिव्यक्ति की सम्पूर्ण सार्थकता तथा सौन्दर्य के लिए किए गए सभी विधान, व्यस्थाऍ, विधियाँ, आयास और प्रयास, रूप- गठन और रूप-योजनाएँ शिल्प में सम्मिलित हैं । शिल्प-संगठन, संश्लेषण तथा अन्विति की प्रक्रिया है। शिल्प का प्रयोग इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप उद्भूत सौष्ठव तथा कलात्मक सौन्दर्य के लिए भी किया जाता है। संक्षेप में अनुभूति शिल्पित होकर ही कला बनती है। कला शिल्प की सिद्धि है । कलाकृति तक का मार्ग ‘शिल्प' है। मार्क शोरर ने इसी भाव को बड़े सरल परन्तु सुन्दर शब्दों मे बाँधकर शिल्प की सीधी सी परिभाषा खड़ी कर दी है- 'शिल्प, वस्तु (अथवा मूल अनुभूति) तथा सिद्ध वस्तु (अथवा कला) का अन्तर है । " वस्तुतः अनुभूति को प्रस्तुत करने के लिए कलाकार अनेक-रूप योजनाओं की व्यवस्था करता है । शिल्प के अन्तर्गत वस्तु को मॉजना, संवारना, संशोधन, परिशोधन, परिष्कार, प्रस्तुतीकरण तथा अभिव्यंजना सभी कुछ आ जाता है। अभिव्यंजित तथा रूपायित होने से पूर्व की मानसिक प्रक्रियाओं का, जो कलाकार के मन में घटित होती हैं, यहाँ अभिप्राय नहीं है। शिल्प का सम्बन्ध अभिव्यंजना के पक्ष से ही है, उससे पूर्व की सृजन प्रक्रिया इसके विचार से परे है। शिल्प सक्रिय होता है। शिल्प समस्त सृजन प्रक्रिया नहीं है, सृजन के निमित्त के बाद ही शिल्प सक्रिय होता है। उससे पूर्व की प्रक्रियाओं संवेदना - ग्रहण, उसका भाव - सत्य में विकास तथा कल्पना के सहयोग से बिम्बों के निर्माण को शिल्प की विवेचन परिधि से बाहर जाना पड़ता है। यह अनुभूति के व्यक्त रूपायन की प्रक्रिया है । 3 डॉ० कैलाश वाजपेयी - आधुनिक हिन्दी कविता मे शिल्प, पृष्ठ 18 4 The difference between content or experience and achieved contorl or Art is technique. [159]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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