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________________ उत्पन्न होने वाली कुण्ठा से पीडित जितेन, जयन्त आदि आ सकते है । भिन्न-भिन्न वर्गों में रहकर भी वे सब अलग व्यक्तित्व के हैं और जीवन संघर्ष मे अकेले जूझते है । जैनेन्द्र के नारी पात्रों में मनोवैज्ञानिक चेतना जैनेन्द्र की नारी पात्र विविध रूपों में दृष्टिगत होती हैं। पहला वर्ग उन स्त्रियों का है जो समाज के अत्याचार का विरोध पूर्ण ढंग से न करके गाँधीवादी सत्याग्रह युक्त ढंग से करती हैं। सामाजिक दृष्टि से सत्याग्रह के माध्यम से वे समाज को नवीन मार्ग दे रही हैं और मानसिक दृष्टि से असमर्थ प्रतिशोध भाव से जलती हुई अपने निकटवर्ती आत्मीयों को क्षुब्ध करने में सन्तोष पाती हैं। वे आत्मपीडक साधिकाएं हैं, क्योंकि उनका विश्वास है कि सत्य के आग्रह से भोगा हुआ दारूण दर्द भी चेतना को जगाने में सहायक होता है। ऐसे स्त्री पात्रों में मृणाल, कल्याणी, इला और वसुन्धरा के नाम लिए जा सकते हैं। इन चारों की प्रमुख समस्या सेक्स की है। समाज उन्मुक्त भोग की अनुमति नहीं देता, परिणामतः इनके जीवन में जो तूफान आते हैं, उन्हीं से उनका मन विद्रोही होता है । विद्रोहवर्ती होकर भी वे समाज भंग का सहारा नहीं लेती, सभी दुःखों को स्वयं सहकर भी कष्ट का अनुभव नहीं करती । जैनेन्द्र की उपलब्धि यह है कि वे सहकर भी पर-पथ को आलोकित करती हैं । त्याग, बलिदान, उत्सर्ग और समर्पण की बलवती प्रवृत्तियाँ उनकी सहयोगिनी होती हैं और सहानुभूति पूर्वक चिन्तन करने वाले के लिए एक नवीन जीवन पथ का उद्घाटन होता है । 'त्यागपत्र' में मृणाल का सेक्स सर्वाधिक उभर कर आया है। शीला के भाई से उसके रागात्मक सम्बन्ध इतने गर्हित समझे गये कि मामी ने उसे छड़ी से पीटा। उसके व्यवहार में पाप की दृष्टि कहीं न [150]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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