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________________ या सन्देह की संवेदनाएँ सब इसी ग्रन्थि की देन थीं। वह कलयाणी से इतना प्रभावित था कि विवाह में उसे प्राप्त करने की इच्छा उसके मन में बदवती हो उठी थी । हीनता ग्रन्थि के कारण वह समझता था कि कल्याणी उसे पति के रूप में कभी भी स्वीकार नहीं करेगी। तभी उसने उसे बदनाम करने का प्रयत्न किया । यदि स्वयं वह भी एक सफल डॉक्टर होता तो वह ऐसा व्यवहार कभी नहीं करता । कल्याणी को बाजार पीटने के पीछे उसे अपमानित करने की धारणा भी डॉ० असरानी की हीनता का प्रमाण है। जैनेन्द्र जी ने 'सुखदा', 'विवर्त', 'व्यतीत', ‘जयवर्धन’, ‘मुक्तिबोध' और 'अनामस्वामी' आदि सभी उपन्यासों में मनोवैज्ञानिक चेतना का प्रस्तुतीकरण किया है। कथा साहित्यकार ने अनेक पात्रों को विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदान किया है। सामान्य दृष्टि से मिलते-जुलते लगने वाले पात्र भी किसी न किसी सूक्ष्म रेखा से अलग होते हैं। पुरुष पात्रों के निर्माण में जैनेन्द्र अपने आधुनिक उपन्यास 'अनामस्वामी' में सफल कहे जा सकते हैं। अनाम और शंकर उपाध्याय दोनों अद्वितीय निर्माण हैं । इस प्रकार जैनेन्द्र के सभी पुरुष पात्रों को देखकर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि कथाकार ने प्रत्येक पात्र को विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदान किया है। अन्य पुरुष पात्रों में कही अहं है, कहीं गर्व, कहीं दम्भ तो कहीं लम्पटता कुछ पात्र ऐसे भी हैं जो आशाओं के अपूर्ण होने पर कुण्ठित हुए हैं तथा कुछ असफल मानसिक उपचार भी हुआ है। वर्गीकरण करते हुए हम श्रीकान्त, नरेश और मिस्टर पुरी को एक वर्ग में रखते हैं तथा सत्यधन, हरि प्रसन्न, मृणाल के पति, डॉ० असरानी, लाल सहाय को दूसरे वर्ग में रख सकते हैं। तीसरा वर्ग आदर्शवादी पात्रों का हो सकता है जिसमें बिहारी, जयवर्धन तथा अनाम के नाम लिए जा सकते हैं। चौथे वर्ग में किसी कारणवश [149]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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