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________________ व्यक्त नहीं भी कर सकता, क्योंकि राजनैतिक पक्ष से वह बहुत कुछ दूर रहकर व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों को ही अपना विषय बनाता है। ऐसी दशा में उसके लिए सम्भव नहीं है कि वह स्वस्थ राजनैतिक दृष्टिकोण का प्रतिपादन कर सके। यही कारण है कि मनोवैज्ञानिक कथा साहित्य जब अपने मूल प्रतिपाद्य विषय से उतर कर अन्य पक्षों का विश्लेषण करता है, तो मात्र भ्रान्त धारणाओं का निरूपण करने के अतिरिक्त वह और कुछ नहीं कर पाता। मूल प्रतिपाद्य से अलग अन्य विषयों को विवेचित करने वाले प्रायः सभी मनोवैज्ञानिक कथा साहित्यकारों की नियति यही होती है। जैनेन्द्र कुमार में स्त्री-पुरुष दोनों का ही मनोवैज्ञानिक चित्रण दृष्टिगत होता है। जिसकी विस्तृत विवेचना करना आवश्यक है। जैनेन्द्र के पुरुष पात्रों में मनोवैज्ञानिक चेतना जैनेन्द्र के कथा साहित्य में व्यक्ति की प्रधानता है, इसलिए इनके पात्र व्यक्तिपरक हैं, उनका मूल्यांकन उनकी निजी चिन्तन पद्धति और उनकी निजी परिस्थितियों और अलग प्रकार के आचरण पर आधारित है। जैनेन्द्र के पात्रों को एक दूसरे के समक्ष रखकर देखना अथवा एक को दूसरे पर प्राथमिकता देना, जैनेन्द्र निर्मित पात्रों के सम्बन्ध में कठिन पड़ेगा। इतना ही नहीं, दो पूर्णतया एक जैसे पात्रों को भी तराजू के पलड़ों पर रखा जाये तो उनमें भी समरूपता नहीं मिलेगी, बल्कि दोनों में अपना कुछ न कुछ निजत्व तो देखने को अवश्य मिलेगा। ऐसा लगता है कि कथाकार ने पात्रों को गढने में तीन विशेष बातों पर ध्यान दिया है, एक विशेष चिन्तन पद्धति, विशिष्ट मनोवैज्ञानिक लक्षण तथा एक असाधारण व्यक्ति परक पृष्ठभूमि-'परख' से लेकर 'अनामस्वामी' तक सभी उपन्यासों में पुरुष मात्र इसी तथ्य को उद्घाटित करते दिखायी पड़ते हैं। इनमें से मुख्य [143]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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