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________________ देता, लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं है कि राजनीति, समाज, अर्थ व्यवस्था तथा संस्कृति से निर्मित युग तथा वातावरण का चित्रण न करके यह मनोवैज्ञानिक कथाकार किसी अन्य लोक तथा वातावरण का चित्रण करता है। इस प्रकार उनकी कृतियों में इन तत्वों की सम्पृक्ति की अनिवार्यता होती है, लेकिन इन तत्वों को अन्य कथाकारों की तुलना में कुछ भिन्न ढंग से ग्रहण किया जाता । अन्तर्मन की स्थितियों का उद्घाटन करने के लिए ही मनोवैज्ञानिक कथाकार बाह्य सृष्टि के व्यापारों का चित्रण करता है । इसमें अगर किसी लेखक के मन में कोई राजनैतिक आग्रह होता है तथा वह देश या समाज के प्रति कर्तव्य भावना से प्रेरित होता है तो उसके चिन्तन का केन्द्र भी सामाजिक शक्तियाँ न होकर व्यक्ति ही होता है । तात्पर्य यह है कि मनोवैज्ञानिक कथा साहित्य का विवेच्य विषय व्यक्ति तथा उसकी मानसिक गतिविधियाँ होती हैं। राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को वह इस दृष्टि से देखता है कि उसने व्यक्ति का निर्माण किन रूपों में किया है, क्योंकि यह प्रामाणिक तथ्य है कि व्यक्तित्व के निर्माण में सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों का बहुत कुछ सहयोग तो होता ही है। मनोवैज्ञानिक साहित्यकार प्रायः राजनीतिक पात्रों को हिंसा दर्शन का समर्थक तथा क्रान्तिकारी विचारकों के रूप में चित्रित करते हैं, क्योंकि हिंसा उनकी दृष्टि में मूल प्रवृत्ति है। जैनेन्द्र की 'सुनीता' का हरि प्रसन्न, 'सुखदा' का लाल तथा 'विवर्त' का अजित सभी मनोवैज्ञानिक दर्शन से ही उत्पन्न क्रान्तिकारी हैं। उनकी कुछ मनोग्रन्थियाँ हैं जो उन्हें क्रान्तिकारी बनने की ओर अग्रसर करती हैं । दूसरी बात यह है कि मनोविज्ञान ने कथा साहित्य में राजनीति को, स्त्री-पुरुष को मिलाने के माध्यम के रूप में बहुधा ग्रहण किया है। अतः मनोवैज्ञानिक कथा साहित्य कोई स्वस्थ राजनैतिक दृष्टिकोण [142]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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