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________________ करते, बल्कि उनका महत्व सत्य की आवश्यकता के अनुकूल नये ढंग से प्रकट करने में है । जैनेन्द्र का जन्म जैन परिवार में हुआ है। जैने धर्म की आत्मा उनके संस्कारों में व्याप्त है। जैनेन्द्र ने यदि स्वधर्म के रूप में किसी भी धर्म को स्वीकार किया है तो वह जैन धर्म है । जैनेन्द्र ने अपने सम्पूर्ण जीवन को जैन आदर्शों में ही ढालने का प्रयत्न किया है। कथा साहित्य जीवन की अभिव्यक्ति है, अतः जैनेन्द्र के कथा साहित्य पर जैन धर्म का प्रभाव होना समुचित प्रतीत होता है। धर्म : अर्थ और स्वरूप जैनेन्द्र जैन धर्म से अत्यधिक प्रभावित हैं। जैनेन्द्र का साहित्य उनके इस प्रभाव का ही परिणाम है। जैनेन्द्र ने जैन साहित्य का विशेष अध्ययन किया है। जैनेन्द्र ने अपने साहित्य में जैन धर्म के विभिन्न अंगों और उपांगो का वर्णन किया है। कुछ जैन कथाएँ उनके जीवन का अंग बन गई हैं, उसके प्रभाव से उनका हृदय आर्द्र हो उठा है। जैनेन्द्र का जीवन सरलता और निरहंकारिता का आदर्श बन गया। जैन धर्म किसी प्रमुख समय में प्रमुख मनुष्य के माध्यम से नहीं चलाया गया। उनके अनुसार यह तो जीवन धर्म है। ईसाइयों ने ईसा को ही 'गॉड' अथवा 'ईश्वर' माना है, किन्तु जैनियों ने महावीर स्वामी को अपना आदि पुरुष नहीं, बल्कि चौबीसवां तीर्थंकर माना है। उनके अनुसार मनुष्य ही समस्त सांसारिक वासनाओं और दोषों से अलग होकर कैवल्य को प्राप्त करता | कैवल्य प्राप्त मनुष्य ही ईश्वर के सदृश है। महावीर स्वामी के तपःपूत व्यक्तित्व ने जैनेन्द्र को अत्यधिक प्रभावित किया है। वे उन्हें अमर विभूति मानते हैं। उनकी मृत्यु हमें उनसे दूर नहीं कर सकती। 27 27 जैनेन्द्र कुमार - मथन, पृष्ठ 221 [99]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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