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________________ दर्शन का पर्याय मानते रहे। यही कारण है कि उनके चरित्रों में एक प्रकार की अन्तर्विरोधी स्थिति दृष्टिगत् होती है तथा उनके प्रायः सभी पात्र निर्बल, आत्मपीड़ित तथा कुण्ठा के शिकार है। इस पीड़ा के दर्शन की अंतिम परिणति मृत्यु में होती है। कल्याणी के चरित्र की अंतिम परिणति उदाहरण के लिए प्रस्तुत की जा सकती है। गाँधी जी ने मानवतावादी भावधारा को ही अपनाया था। जैनेन्द्र भी इसी विचारधारा से प्रभावित थे। उनका संपूर्ण कथा साहित्य मानवतावादी और गाँधीवादी विचार दर्शन से प्रभावित है। गांधी जी के सत्य, अहिंसा के तत्वचिंतन ने जैनेन्द्र को नैतिकतावादी दृष्टिकोण प्रदान किया है, तभी वे कामवासना को भी हिंसा मानते है। जैनेन्द्र जी ने प्रेम और अहिंसा के सिद्धान्त को अपनाया है। ‘सुखदा' उपन्यास में हरिसदा ने क्रांति दल संगठन को भी गाँधीवादी दर्शन के फैलने से पहले ही भंग कर देना ठीक समझा। जैनेन्द्र के मानवतावादी विचार दर्शन और गाँधीवादी विचार दर्शन में काफी साम्य है। 'त्यागपत्र' में मृणाल वेश्याओं की बस्ती में रहने लगती है। उसके पीछे उसका व्यक्तित्वदर्शन, सामाजिक परिस्थितियाँ प्रधान कारण हैं। अगर उसे अनुकूल परिस्थितियाँ मिल जाती तो वह यहाँ कभी निवास न करती। 'सुनीता' में हरि प्रसन्न क्रान्तिकारी पात्र है, परन्तु उसका प्रत्येक कार्य भावनात्मक है। वह हृदय से पवित्र मनुष्य है और मानवीय धर्म की प्रतिष्ठा के लिए ही क्रान्ति करता है। व्यक्तित्ववादी दर्शन व्यक्तित्ववादी दर्शन का अर्थ है कि समाज में रहते हुए भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को अक्षुण्ण रखना चाहता है। संसार की सबसे बडी पहेली है-एक व्यक्ति का व्यक्तित्व और संसार की सबसे बड़ी समस्या है-व्यक्तित्व की समस्या। एक स्थान में व्यक्ति सबसे पृथक [91]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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