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________________ आलोचकों ने गाँधीवादी दर्शन का प्रभाव स्वीकार किया हैं।20 जैनेन्द्र जी काम-वासना को भी हिंसा की श्रेणी में रखते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि असामाजिक तथा अनैतिक काम भाव को ही लेखक हिंसा की कोटि में रखता है। ‘सुनीता' में हरिप्रसन्न मित्र की पत्नी सुनीता पर आसक्त होता है तथा उसे सम्पूर्णता में प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करता है, लेकिन सुनीता आकस्मिक ढंग से नग्न होकर हरि प्रसन्न के मन में जुगुप्सा का भाव जागृत करके उसका हृदय परिवर्तन करती है तथा उसकी वासना रूपी हिंसा का परिष्कार करती है। कुछ आलोचकों का यह मानना है कि सुनीता का नग्न होना अहिंसा है, क्योंकि सूनसान जंगल में कोई अकेली नारी हिंसक पुरुष से अपनी रक्षा अन्य ढंग से कर ही नहीं सकती थी, इसलिए सुनीता को नग्न होना पड़ता है। लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि गाँधी जी ने स्वयं अहिंसा दर्शन का यह रूप कहीं भी प्रस्तुत नहीं किया, परन्तु फिर भी आलोचक जैनेन्द्र की कला को सराहते नहीं थकते हैं। शिवनाथ जी ने इसे गाँधीवादी दर्शन का साहित्यिक संस्करण माना है-'रात के समय सूनसान जंगल में हरिप्रसन्न के सामने सुनीता के दिगम्बर हो जाने का रहस्य क्या है? यह गाँधी की अहिंसा का साहित्यिक प्रतिपादन है और इसके लिए मैं जैनेन्द्र कुमार का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। साहित्य के क्षेत्र में गाँधी जी की अहिंसा का व्यवहार जैनेन्द्र कुमार के अलावा और किसी के द्वारा इतने ऊँचे रूप में नहीं दिखाई पड़ा अथवा यों कहें कि दिखाई ही नहीं पड़ा। लेकिन सत्य तो यह है कि 'सुनीता' के सभी चरित्र काम कुण्ठा के शिकार हैं। श्रीकान्त यह सोचता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके प्रति सुनीता का समर्पण केवल पत्नी होने के कारण है। अतः वह सुनीता को परीक्षा में डालने की नीयत से कुछ दिनों के लिए उसे अकेली 20 महेन्द्र चतुर्वेदी-हिन्दी उपन्यास : एक सर्वेक्षण, पृष्ठ - 19 21. आलोचना - उपन्यास विशेषांक, अंक - 73, पृष्ठ - 115 [8]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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