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________________ कथा साहित्य और संस्कृति द्वितीय महायुद्धोत्तर मानव जीवन सीधे-सादे मार्ग से हटकर संकीर्ण गलियों में गुमराह सा होने लगा तथा जीवन की सरलता, सहजता और सुगमता अपने आप में जटिल, बोझिल और कठिन हो गयी। मानसिक हलचल और कुशल जीवनयापन करने की समस्याओं ने मानव के संगठित व्यक्तित्व को तोड़कर रख दिया। मानसिक उलझन और कुंठाओं ने अस्थिरता का सृजन किया। मनुष्य के जन्मजात संस्कार परिवर्तन क्रम में स्थिर न रह सके और जीवन में मूल्यों का विघटन होने लगा। मानव मूल्यों के विघटन के साथ ही महामानव का अस्तित्व काल्पनिक होकर रह गया और यथार्थ धरातल पर लघु मानव का जन्म हुआ। सांस्कृतिक चेतना परिवर्तन के लिए बाध्य हो गयी, क्योंकि विघटित मूल्यों के साथ यह स्वाभाविक ही था। आशा, निराशा और अनास्था के मध्य झूलते हुए जीवन में कहानी और उपन्यास को महान गौरव प्राप्त हुआ। महामानव के स्थान पर उपन्यास और कहानियों में लघु मानव नायक बनकर दुःख से भरे हुए जीवन पर रूखी हँसी हँस पड़ा। विनाशकारी अस्त्रों के भय और संत्रास से ग्रस्त मानव जीवन की अन्तिम घड़ियाँ गिनने लगा। साहित्य का लक्ष्य होता है-जीवन को अनेक आयामों में उद्घाटित अथवा निरूपित करना। साहित्य में जीवन मूल्य अथवा जीवन दर्शन भिन्न-भिन्न आयामों में विश्लेषित हुआ करते हैं। साहित्य में मानव के मूल्य बोध और सौन्दर्य बोध दोनों का समावेश रहता है। किसी राष्ट्र या जाति के सौन्दर्य बोध की व्यापकता पर कलागत व्यापकता निर्भर हुआ करती है। सौन्दर्य बोध और मूल्यबोध दोनों अलग-अलग होते हुए भी मानव जीवन में संतुलित होते हैं। एक सुसंस्कृत मानव का मूल्य बोध और सौन्दर्य बोध प्रौढ़ होता है। हमारे इतिहास में ऐसे नाम मिलते हैं, जैसे-गाँधी जिनके द्वारा इस सिद्धान्त [80]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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