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________________ देश की संस्कृति को एकसूत्र में बांधता है। साहित्य संस्कृति के विकास में दिशा को बताता है और संस्कृति निद्रालीन कथाकार की निद्रा भंग कर देती है तथा साहित्य को प्रेरित करती है। किसी राष्ट्र की संस्कृति को जानने के लिए उस राष्ट्र के शास्त्र, विद्या, कला आदि को जानना अति आवश्यक है। साहित्यकार परम्परावादी और प्रयोगवादी होता है। यह युग चेतना से प्रभावित होकर पुरातन में नये युग का निर्माण करता है। परम्परा और प्रयोग के आपस में सन्तुष्टि के माध्यम से मनुष्य जाति ने अपनी संस्कृति तथा साहित्य का निर्माण किया है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मनुष्य के जीवन के लिए संस्कृति और साहित्य दोनों अति उपयोगी हैं, किसी एक के बिना जीवन का सर्वांगीण विकास असम्भव है और मनुष्य जाति के सौन्दर्य बोध एवं मूल्य बोध को आगत के लिए संचित भी नहीं किया जा सकता। वर्तमान युग की साहित्यिक विधाओं में कथा साहित्य ने अत्यधिक प्रगति की है। इसकी सफलता का केवल एक ही कारण है कि कथा साहित्य ने मनुष्य के जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों को प्रकाशित करने का जो कार्य अपने हिस्से में लिया है, वह जटिल तो था ही, इसके अलावा अन्य किसी विधा की क्षमता के परे भी था। कठिनता के दर्द से व्याकुल मानव जीवन की जटिल संस्कृति का चित्रण, कथा साहित्य करने को प्रस्तुत हुआ और अभिनव मूल्यों को प्रकट करने लगा। साहित्यकार का दायित्व भी अन्य की अपेक्षा अधिक बढ़ गया। जैनेन्द्र के कथा साहित्य में भारतीय संस्कृति की व्यापकता अन्य पूर्ववर्ती कथाकारों से किसी प्रकार कम नहीं है। जैनेन्द्र के कथा साहित्य में सांस्कृतिक चेतना के विवेचन से पूर्व साहित्य के दायित्व की परख करते हुए उसकी सांस्कृतिक संचेतना की संक्षिप्त विवेचना असंगत न होगी। [7]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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