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________________ ये दो बात करने की कोई जरुरत नहीं। न यहा तुम्हारी बातो के वीच शायद मौजूद रहने की ही जरूरत है। तुम दोनो सुलकर बात क भोर पीछे मुझ से कहना।" ____ "नही, वावूजी," द्रौपदी ने कहा--"आपको अपना मन ज़रार र कर लेना चाहिए, और उनसे भरपूर कह-सुन लेना चाहिए। बस, मे पुलिस वगैरा को मत लाइएगा । पाखिर प्रात्मीयो में डर-लिहाज बात क्या है ? गलती हम लोगो की तरफ से यही तो हुई, किड बचाव से काम लिया । तभी जो हमने सच माना था, वह सराय से होने के कारण अन्त मे झूठ निकला । और आत्मीयता मे गुस्सा व हो, तो वह सब निकल-निकला कर आखिर भलाई को ही राह देता इसलिये प्राप मेरे परोक्ष मे हर तरह उनमे अपने मन की कह-सुन लं येगा । वस्शने की बिल्कुल न सोचिये। सिर्फ बाहरी धमकी को लीजियेगा । और यह भी जरूरी है, कि आप रहे, जब हम दोन बातें हों।" "नहीं, नहीं, दो जवानो को बीच में मेरा क्या काम ?" और प्र भाव से अपनी बेटी द्रौपदी को दोनो गालो पर थपथपा कर, वह तरफ रखे हुए टेलीफोन की ओर बढकर, चोगा उठापार, डायल । लगे। प्रल '६२
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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