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________________ वेकार ६६ "उसकी श्रव फिकर नही है- हा, क्या कहते थे, दो बहने है और " "मैंने छोटे बाबू को फोटो के लिए कह दिया है, ठीक हुआ तो बाकी विचार पीछे होगा ।" "फोटो से कही ठीक पता चलता है ? यही पडोस की बात है, फोटो से कैसी सुन्दर लगी थी, पर बहू ग्राई तो ऐसी कि । जाके तुम देस श्राते तो कैसा ?" "किसे देख श्राता ? बात न वात, वेबात की वात । मुझे अव जाने दो ।" "वम्बई मे है लडकी ? धारीवाल साहब को फोन कर दें कि देख के पता दे । शाम तक उनका फोन ग्रा सकता है । इन बातो मे देखो, देर नही किया करते । और तुम हो कि एक काहिल हो । लो, धारीवाल को मिला फोन ।" "क्यो, तुम्हे कोई और काम नही है कि " "तो में मिलाती हू, धारीवाल को । वताना क्या नम्बर है ?" देती हू बम्बई की लडकी तुम्हारी डायरी मे होगा न ? अर्जेन्ट किये का पता तो है न तुम्हारे पास ।" "नही है ।" . "नही है ? वम तुमसे हो लिया कुछ पता भी नही पूछा छोटे बाबू करते । लो श्रव पूछ लो । देस-भाल के शाम तक वापस से ' अरे ऐसे घर-गृहस्थी के काम नही हुआ पूछ के, फौरन धारीवाल को कहो कि सब फोन पर सवर करे । श्राज क्या है, तीज र असोज का महीना । कातिक मे गजे में व्याह हो सकता है, जोग भी है । तुम्हारे पान किनने की तैयारी है ? ज्यादे फिकर की बात नहीं, जेवर के लिए मेरे पास ने हो जाएगा। काफी तो पुराना पडा हो है । कल ही बुला के उसे नया करने के लिए वह दूगी। वह फिकर मुझ पर | ऊपर की तैयारी के लिए तुम्हें चिन्ता होती हो तो में राधे बाबू से वह तपती हू । तजुर्वेकार है
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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