SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुक्त प्रयोग जरूरत है ?" ५५ " तुम से - डाई सौ मामिक ।" --- "यह तो तुम्हारे लिए कोई बडी रकम नही है । सुनो, कुछ काम क्यो नही कर लेते ।” "बेवकूफ न वनो । वह नही हो सकता । जिस पाखड को ढाना है, उसी को सिर पर लू "तो फिर ?" ܕܕ "देखो, प्रमिला, जानता हू तुम्हारे पास पैसा है । लेकिन तुम जा सकती हो। मैं समझता था, तुम्हारे पास दिमाग है, और वह आजाद है । पैसे मे ज्यादा मेरे नजदीक उसकी कीमत है । लेकिन वह चीज तुम्हारे पास नही है तो अपना पैसा लेकर यहा से रुखसत हो सकती हो ।" "तुम ने ढाई सौ मासिक कहा । यही न ?” कह कर अजब व्यग से वह हसी, "और वह सब तुम मुझ से लोगे, क्यो ?" "नही एक पैसा नही लूगा । इस झार्डर के सामान का भी नही ।" "विगडो नही हा, एक मुझ से तुम सब चाह सकते हो । सव तुम ने लिया भी है । लेकिन 33 " फिर वही विवाह--यही न ?” "वह तो निश्चित ही है ।" "तुम शायद रसम को विवाह मानती हो । मेरे लिए मन का विवाह असली है और उसे ही बेमन ढोने-टिकाने की जरूरत भला वयो।" प्रमिला ने शेडलेन को देखा । कुछ देर जम कर देखती रही । फिर बोली--"यू प्रार ए चीट एण्ड ए स्काउन्ड्रल | (तुम एक घोसेवाज और आवारा आदमी हो । ) " दोइलेन ने सुन कर तत्काल प्रमिला को उगलियो को लिया श्रीर गर्दन नीची करके जल्दी से चूम लिया । कहा, “बैंक यू !" प्रमिला हस पडी । बोली, "तुम्हारी यही श्रदाए तो जीत जाती हैं ! वट यू प्रार ए लोफर श्रालराइट ।"
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy