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________________ निश्शेष और साथ में खर्चा ज्यादे नही लगेगा । पर वह नही होगा । यहा. दिल्ली मे तुम्हे नौकरी मिल जाए, चाहे कितना ही तुम पाने लगो, मुझे उससे कोई मतलब नही होनेवाला है । मैं साथ नही रहूगी, नही रहूगी, नही रहूगी । मैं हरजाई हू, छिनाल हू, वेसवा हू, पर मरते-मरते तुमसे कुछ कहने नही ग्राऊगी । अन्त समय है । मेरी शान्ति मे तुम विधन मत डालो । तुम्हारा जहा मन लगता हो, धर्म के स्थानो मे, तीर्थों मे जाके तुम भी शान्ति से रहो । और समझ लेना कोई शारदा थी तो वह मर गई ।" रामशरण सुनते रह गए थे । गुम और सुम अन्त मे बोले " तुम्हे मेरे साथ चलना है ।" "नही चलना है " कहता हू, चलना है ।" "नही, नही चलना है ।" "नही चलना है -- नही ही चलना है कहते-कहते रामशरण तडित वेग से आगे बढे और शारदा के गालो पर जोर से चाटा जड दिया । ײן " - २७ शारदा का गाल चाटे की चोट पर तमतमा आया । लेकिन उसमे क्रोध नही हुआ । वह झुझलाई भी नही । एक हाथ ] श्रनायास उसका अपने चोट खाये हुए गाल पर चला गया और मानो तनिक मुस्कराती हुई बोली, "साथ लाश को ले चलोगे ? लाश सडेगी, काम न श्रयगी ।" रामशरण ने कहा, "मैं थूकता हू तुझ पर और तेरी लाग पर । चदजात, रडी " और सचमुच रामशरण ने हलक से थूक निकाल कर शारदा पर थूक दिया और तेज कदमो से मुडकर वह जीना उतरते चले गये । शारदा ने घोती के पल्ले से अपना मुह पोछा । शीशा लेकर गाल की चोट का निशान देखा और सन्तोष की सास ली । जैसे बची हो और जीती हो । जनवरी ६५
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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